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गोमा हँसती है

मैत्रेयी पुष्पा

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :198
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7663
आईएसबीएन :9788170163985

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‘गोमा हँसती है’ की कहानियों के केंद्र में है नारी, और वह अपने सुख-दुःखों, यंत्रणाओं और यातनाओं में तपकर अपनी स्वतंत्र पहचान मांग रही है...

Goma Hansti Hai

शहरी मध्यवर्ग के सीमित कथा-संसार में मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ उन लोगों को लेकर आई हैं, जिन्हें आज समाजशास्त्री ‘हाशिए के लोग’ कहते हैं। वे अपनी ‘कहन’ और ‘कथन’ में ही अलग नहीं हैं, भाषा और मुहावरे में भी ‘मिट्टी की गंध’ समेटे हैं।

‘गोमा हँसती है’ की कहानियों के केंद्र में है नारी, और वह अपने सुख-दुःखों, यंत्रणाओं और यातनाओं में तपकर अपनी स्वतंत्र पहचान मांग रही है। उसका अपने प्रति ईमानदार होना ही ‘बोल्ड’ होना है, हालाँकि वह बिल्कुल नहीं जानती कि वह क्या है, जिसे ‘बोल्ड होने’ का नाम दिया जाता है। नारी-चेतना की यह पहचान या उसके सिर उठाकर खड़े होने में ही समाज की पुरुषवादी मर्यादाएँ या महादेवी वर्मा के शब्दों में ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ चटकने-टूटने लगती हैं। वे औरत को लेकर बनाई गई शील और नैतिकता पर पुनर्विचार की मजबूरी पैदा करती हैं। ‘गोमा हँसती है’ की कहानियों की नारी अनैतिक नहीं, नई नैतिकता को रेखांकित करती है।

कलात्मकता की शर्तों के साथ बेहद पठनीय ये कहानियाँ निश्चय ही पाठकों के फिर-फिर अपने साथ बाँधेंगी, क्योंकि इनमें हमारी जानी-पहचानी दुनिया का वह ‘अलग’ और ‘अविस्मरणीय’ भी है जो हमारी दृष्टि को माँजता है। ये सरल बनावट की जटिल कहानियाँ हैं।

मैत्रेयी पुष्पा

जन्म : 30 नवम्बर, 1944, अलीगढ़ जिले के ‘सिकुरी’ गाँव में।

आरंभिक जीवन : जिला झाँसी के ‘खिल्ली’ गाँव में।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी साहित्य) बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी।

प्रकाशित रचनाएँ : बेतवा बहती रही, इदन्नमम, चाक, झूला नट, अलमा कबूतरी, विजन, अगनपाखी, कही ईसुरी फाग, त्रिया हठ (उपन्यास); गोमा हँसता है, ललमनियाँ, चिन्हार (कहानियाँ); कस्तूरी कुंडल बसै (आत्मकथा); खुली खिड़कियाँ, सुनो मालिक सुनो (स्त्री-विमर्श); मंदाक्रान्ता (नाटक); ‘फैसला’ कहानी पर टेलाफिल्म ‘बसुमती की चिट्ठी’; ‘इदन्नमम’ उपन्यास पर आधारित साँग एंड ड्रामा डिवीजन द्वारा निर्मित छायाचित्र ‘संक्रांति’।

सम्मान/ पुरस्कार : ‘सार्क लिटरेरी अवार्ड’ और ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ द्वारा दिए गए ‘सरोजिनी नायडू पुरस्कार’ के अतिरिक्त अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक पुरस्कारों से सम्मानित।

संप्रति : स्वतंत्र लेखन।

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